कभी चंबा रियासत से दिल्ली दरबार तक जिस चंबा रूमाल का डंका बजता था आज उसे पूछने वाला कोई नहीं है। इसकी वजह यह है कि रेशम की बढ़ती कीमतों ने कारीगरों के हाथ बांध दिए हैं, वहीं मार्केटिंग का अभाव भी चंबा रूमाल को खल रहा है। यही हाल चंबा चुख और जरीस का भी है।
दोतरफा डिजाइन के अदभुत नमूने को चंबा रूमाल की पहचान मिली थी, लेकिन अब न तो इसके कद्रदान हैं और न ही भारी-भरकम कीमत को अदा कर इसे खरीदने के शौकीन। चंबा रूमाल की कीमत इस समय ढाई से दस हजार रुपये तक है। अगर उत्पादकों से हिमाचल में बिक्री के बारे में पूछा जाए तो उनका जवाब दस प्रतिशत तक रहता है, जबकि हिमाचल से बाहर इसकी बिक्री 30 से 50 प्रतिशत के बीच है। यानी चाहे प्रदेश के भीतर हो या बाहर, बिक्री सौ फीसदी के आंकड़े को कभी छू नहीं पाई।
विशेषज्ञों की मानें तो चंबा रूमाल बनाने वाले कारीगर लंबे समय तक इस काम से जुड़े नहीं रह पाते हैं। दरअसल, चंबा रूमाल में बेहद बारीकी से काम होता है। रेशम के धागों का डिजाइन बनाने के लिए ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। ऐसे में कारीगर की आंखों पर गहरा असर पड़ता है। लगातार पांच साल तक इस रूमाल का काम करने वाले कारीगर को चश्मे की जरूरत पड़ जाती है। इतनी मेहनत के बाद बनाए रूमाल को तवज्जो न मिलने से ज्यादातर उत्पाद कारीगरों के घरों की दीवारों की ही शोभा बढ़ाते हैं।
हिमाचल से बाहर चंबा रूमाल बिक्री के लिए बाबा खड़क सिंह मार्ग दिल्ली, बंगलूर और चंडीगढ़ में हिमाचल इंपोरियम में मौजूद है। हालांकि वहां भी खासतौर पर कोई ग्राहक रूमाल खरीदने के लिए नहीं आता है। अब तक चंबा रूमाल की जो भी बिक्री हुई है उसके लिए कारीगरों को खुद ग्राहक ढूंढ़ने पड़े हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी ग्राहक ने केंद्र में आकर चंबा रूमाल की मांग की हो।
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चुख व जरीस खाने वाला कोई नहीं
रूमाल के साथ ही चंबा चुख भी खतरे में है। लाजवाब तरीके से तैयार मिर्ची की चटनी को चखने के लिए चंबा से बाहर कोई तैयार नहीं है। हालत यह है कि चुख के उत्पादन में पांच साल में 50 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं चंबा की मशहूर मीठी जरीस की भी बिक्री लगातार कम होती जा रही है।
चंबा रूमाल, चुख व जरीस कि हिमाचल व दूसरे राज्यों में की मांग कम हो रही है। इसे बढ़ाने के लिए सरकार ही कुछ प्रयास कर सकती है। बहुत से कारीगर इस पेशे में आना चाहते हैं, लेकिन मुनाफा कम होने से नहीं आ रहे हैं।
चुख बनाने की विधि
चंबा चुख बनाने के लिए सूखी लाल मिर्च, गलगल का रस, जीरा, मीठी सौंफ, अजवाइन नमक, अदरक, कद्दूकस की गई सूखी मूली का इस्तेमाल होता है। इस सामग्री को सरसों के तेल में पकाकर उसमें गलगल का रस मिलाया जाता है। रस के उबलने पर लाल मिर्च, मूली, अदरक, छोड़ी पिसी अजवाइन, पिसी हुई मीठी सौंफ, जीरा और नमक का मिश्रण डाला जाता है। ठंडा होने पर उसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाया जाता है।
ऐसे बनती है जरीस
कद्दूकस की हुई गरी, सौंफ बड़ी व छोटी इलायची के दाने व मिश्री लेकन सौंफ को हल्का भूना जाता है। उसके बाद शेष सामग्री इसमें मिला दी जाती है।
चंबा रूमाल
सफेद सूती कपड़े पर अलग-अलग रंगों के रेशमी धागे से कढ़ाई कर उकेरे गए चित्र। इसकी विशेषता यह है कि यह देखने पर दोनों तरफ से एक जैसी दिखती है। रूमाल पर आम तौर पर रासलीला व गद्दी-गद्दण के चित्र काढ़े जाते हैं।