Thursday, September 23, 2010

अयोध्या विवाद पर फैसला टला.........................


सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मुकदमे का फैसला टालने का आदेश दिया है। उच्चतम न्यायालय के इस आदेश से यह साफ हो गया है कि अयोध्या में विवादित स्थल के मालिकाना हक का फैसला अब 24 सितंबर को नहीं होगा। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 28 सितंबर तय की है। उच्चतम न्यायालय ने रमेशचंद्र त्रिपाठी की याचिका पर सभी संबद्ध पक्षों को नोटिस भी जारी किया। त्रिपाठी ने अपनी याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खंडपीठ के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें स्वामित्व विवाद पर फैसला टालने से रोक लगाने से इंकार कर दिया गया था। न्यायालय अगले मंगलवार को फैसले को टालने के त्रिपाठी के आग्रह पर सुनवाई करेगा।

फैसले पर एक सप्ताह के लिए रोक
न्यायमूर्ति आर वी रवीन्द्रन और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की पीठ में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए दायर याचिका पर सुनवाई के बारे में परस्पर विरोधी राय होने के चलते उन्होंने फैसले पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी। न्यायमूर्ति रवीन्द्रन का मानना था कि विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए, जबकि न्यायमूर्ति गोखले का कहना था कि समाधान के विकल्प की तलाश करने के लिए संबद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। लेकिन फिर न्यायमूर्ति रवीन्द्रन ने न्यायमूर्ति गोखले की राय को मानने पर सहमति दे दी। अपने आदेश में न्यायमूर्ति रवीन्द्रन ने कहा कि परंपरा यही है कि जब किसी एक न्यायाधीश की राय अलग हो तो नोटिस जारी किया जाए।

कांग्रेस-भाजपा ने फैसले का स्वागत किया
अदालत के इस निर्देश से यह माना जा रहा है कि दोनों पक्षों को आपसी बातचीत से मामले को सुलझाने के लिए एक और मौका मिला है। अदालत के इस आदेश का भाजपा नेता विटय कटियार ने स्वागत किया है। वहीं, कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि अदालत के इस रुख से आपसी बातचीत से विवादित मुद्दे को सुलझाने का एक और मौका मिला है।

पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए कहा
इससे पहले सर्वोच्च अदालत की एक पीठ ने बुधवार को इस मुद्दे पर सुनवाई करने से इसलिए इनकार कर दिया कि जल्द सुनवाई के लिए जारी की जाने वाली सूची में वह मामला शामिल नहीं था। बृहस्पतिवार को मामला सूची में शामिल होने के बाद अदालत इस मुद्दे पर सुनवाई कर सकती है। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने रमेश चंद्र त्रिपाठी की ओर से दायर याचिका पर कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि यह पीठ इस मामले पर अतिशीघ्र मौखिक सुनवाई कर सकती है। हालांकि पीठ ने अदालत की रजिस्ट्री को सामान्य प्रक्रिया के तहत मामले को किसी भी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए कहा है।

पीठ नहीं ले सकती सुनवाई करने का फैसला
पीठ के समक्ष वकील सुनील जैन ने कहा कि इस मामले पर तत्काल विचार करने की जरूरत है। इसके बाद पीठ ने इस पर दोपहर दो बजे सुनवाई करने का निर्देश दिया। दोपहर में अतिशीघ्र सुनवाई में पीठ ने कहा कि यह मामला दीवानी मुकदमे का है, इस पर सुनवाई करने का निर्णय यह पीठ नहीं कर सकती। पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति कबीर ने कहा कि इस मुद्दे पर सुनवाई करने का फैसला यह पीठ नहीं ले सकती। इसलिए रजिस्ट्री तय करेगी कि यह मामला किस पीठ के समक्ष जाएगा जो फैसला दे सकती है। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा कि यदि शीर्ष अदालत मामले की सुनवाई नहीं करेगा तो अपील बेमानी हो जाएगी क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट 24 सितंबर को इस मुद्दे पर फैसला सुनाएगा। जवाब में न्यायमूर्ति कबीर ने कहा माफ कीजिए मैं सुनवाई तय नहीं कर सकता।

मध्यस्थता की अनुमति को समय देने की मांग
सर्वोच्च अदालत में दायर अपील में मध्यस्थता की अनुमति के लिए थोड़ा समय देने की मांग की है। इसके अलावा आवेदक पर लगाए गए जुर्माने को भी चुनौती दी गई है। त्रिपाठी ने इसके पहले फैसला टालने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में आवेदन दाखिल किया था। लेकिन पांच दिन पहले हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 60 साल पुराने श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के विवाद का समाधान तलाश करने के लिए मध्यस्थता की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही त्रिपाठी के आवेदन को शरारतपूर्ण और बाधा डालने का प्रयास कहते हुए उन पर पचास हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया था। हाईकोर्ट में दायर याचिका में त्रिपाठी ने कहा था कि 24 सितंबर को आने वाले फैसले से सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंच सकता है और देश में हिंसा हो सकती है। त्रिपाठी ने फैसले को टाले जाने की याचिका में मीडिया में आ रही उन खबरों के आधार पर दायर की है। जिनमें कहा गया था कि इस फैसले से सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है और हिंसा हो सकती है।

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